Alankar Kise Kahate Hain Aur Kitne Bhed अलंकार किसे कहते हैं?

Alankar Kise Kahate Hain Aur Kitne Bhed अलंकार किसे कहते हैं?

अलंकार किसे कहते है? | Alankar Kise Kahate Hain | Alankar Ke Bhed | अलंकार के भेद |

अलंकार का अर्थ

अलंकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अलं + कार। जिसमें अलं का अर्थ होता है सजावट और कार का अर्थ करने वाला होता है। अर्थात जो अलंकृत या घोषित करें वह अलंकार है।

अलंकार का शाब्दिक अर्थ है आभूषण जिस प्रकार आभूषण मानव शरीर की शोभा बढ़ाते हैं ठीक वैसे ही अलंकार के प्रयोग से काव्य में चमत्कार, सौंदर्य, और आकर्षण उत्पन्न हो जाता है।

अलंकार किसे कहते हैं? [ Alankar Kise Kahate Hain ]

भाषा के आभूषणो को अलंकार कहते है।

अलंकार की परिभाषा

सुमित्रानंदन पंत के अनुसार, ” अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए नहीं, विभाग की अभिव्यक्ति के विशेष द्वार हैं।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, ” भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप गुण और क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने में कभी-कभी सहायक होने वाली युक्ति को अलंकार कहते है।”

अलंकार के भेद [ Alankar Ke Bhed ]

अलंकार के दो भेद होते है:

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार

1. शब्दालंकार

काव्य में शब्दों के प्रयोग से जो चमत्कार या सौंदर्य उत्पन्न होता है उसे शब्दालंकार कहते हैं इसके प्रमुख तीन भेद हैं।

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. श्लेष अलंकार

(A) अनुप्रास अलंकार

जब एक ही व्यंजन वर्ण की आवृत्ति बार-बार, एक निश्चित क्रम में होती है। तो उसको अनुप्राश अलंकार कहते हैं।

उधारण: चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चाँदी की चम्मच से चटनी चटाई।

स्पष्टीकरण: इस वाक्य में च वर्ण की आवर्ती बार बार हुई है। अतः इसमें अनु प्राश अलंकार है।

अन्य उधारण:

  1. कुटिल कुचाल कुकर्म छोड़ दे।
  2. मिटा मोड़ूँ मन भई मुलिन।
  3. कूके लगी कोयले कंदबन पे बैठी फेरी।
  4. घेर घेर घोर गगन धारा धार ओ।

अनु प्राश अलंकार के भेद

  1. छेकानुप्राश
  2. व्रत्यानुप्राश
  3. शृत्यानुप्राश
  4. लाटानुप्राश
  5. अंत्यानुप्राश
छेकानुप्राश

जब एक वर्ण की अनुव्रती केबल एक बार होती है मतलब वर्ण केवल दो बार आता है तो वहाँ छेकानुप्राश अलंकार होता है।

जैसे की “हरी पद कोमल कमल से।” में क केबल दो बार आया है। यहाँ पर छेकानुप्राश अलंकार है।

व्रत्यानुप्राश

जब एक वर्ण की आनुव्रती एक से अधिक बार होती है। तो वहाँ पर व्रत्यानुप्राश अलंकार होता है।

जैसे की “मिटा मोड़ूँ मन भई मुलिन।” में म वर्ण की आवर्ती कई बार हुआ है। इसलिए यहाँ पर व्रत्यानुप्राश अलंकार है।

शृत्यानुप्राश

जब कंठ, तालव्य आदि किसी एक ही स्थान से उच्चारित होने बाले वर्णो की आव्रती होती है तो वहाँ पर शृत्यानुप्राश अलंकार होता है।

उधारण:

कहै पद्माकर सुगंध सरसावै सुची,
विथुरी बिराजै बार हीरन के हार पर।

स्पष्टीकरण:

यहां पर केवल एक ही स्थान से उच्चारित होने वाले वर्ण स और व में की आवृत्ति हुई है।

लाटानुप्राश

जब एक ही अर्थ वाले शब्दों की आवृत्ति हो , परंतु अन्वय करने पर उनका अर्थ अलग हो जाता हो।, लौटानुप्रास अलंकार कहते हैं।

उदाहरण:

पूत कपूत में क्यों धन संचय।
पूत सपूत तो क्यों धन संचय।

इस उदाहरण में क्यों धन संचय की आवृत्ति कपूत और सपूत अन्वय के साथ भिन्न अर्थ में हो गई है। यहां पर कहा गया है कि अगर आपका पुत्र कपूत है तो उसके लिए धन संचय करने की कोई आवश्यकता नहीं है बे उसे बेकार कर देगा या बर्बाद कर देगा।

और यदि आपका पुत्र सपूत है तो उसके लिए भी धन संचय करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह अपने दम पर ही सब कुछ इकट्ठा कर लेगा।

अंत्यानुप्राश

जब छंद के अंत में स्वर या व्यंजन की आवृत्ति हो तथा समान वर्ण आने से तुक मिलती हो, तो वहां पर अंतर अनुप्रास अलंकार होता है। इसका उदाहरण निम्न प्रकार है:

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।

स्पष्टीकरण: इस छंद में ई स्वर की आवृत्ति हुई है।

(B) यमक अलंकार

जब एक शब्द की आवृत्ति एक से अधिक बार हो और उनके अर्थ अलग-अलग हो तब वहां पर यमक अलंकार होता है। इसका उदाहरण निम्न प्रकार है:

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
बा खाए वो राय नर या पाई बोराय।

यहां पर कनक शब्द का इस्तेमाल दो बार हुआ है लेकिन दोनों बार इसका अर्थ अलग-अलग है। पहले कनक का अर्थ है सोना और दूसरे कनक का अर्थ है धतूरा।

जब मनुष्य को सोना प्राप्त हो जाता है तब भी वह अधिक धनवान होने के कारण बोरा जाता है। और जब मनुष्य धतूरे का सेवन कर लेता है तो नशे के कारण भी वह बोराने लगता है।

कुछ अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं:

  1. काली घटा का घमंड घटा।
  2. वह बांसुरी की धुन कहानी परे।
    कुल का नी हियों तजी भाजती है।
  3. लाल चेहरा है नहीं, फिर लाल किसके।

(C) श्लेष अलंकार

जब एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त हुआ हो लेकिन उसके अर्थ अलग-अलग निकलते हो तो वहां पर श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गई सोई।
बारे उजियारे लगे, बड़े अंधेरो होय।

इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है:

इस अलंकार में बारे शब्द का इस्तेमाल केवल एक ही बार हुआ है लेकिन यहां पर इसके दो अर्थ हैं। इसका इस्तेमाल जलने और बचपन के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

ठीक उसी प्रकार यहां पर बड़े शब्द का इस्तेमाल भी हुआ है। इसके भी दो अर्थ हैं एक अर्थ है बड़ा होना और दूसरा अर्थ है बूझना।

श्लेष अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं:

  1. बाज पराये पानि परि, तू पच्छीनू न मारी।
  2. नर की अरु नाल नीर की, गति एक कर जोय
    जेतो नीचो है चलाई, तेतो ऊँचा होई।

2. अर्थालंकार

जब काव्य में अर्थ की विशेषता के कारण सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न होता है। तो वहाँ पर अर्थालंकार होता है।

अर्थालंकार के निम्न भेद है:

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. अतिशयोक्ति अलंकार
  5. संदेह अलंकार
  6. प्रतीप अलंकार
  7. भ्रांतिमान अलंकार
  8. मानवीकरण अलंकार

Post a Comment

Previous Post Next Post