कशेरुक दण्ड के कार्य

कशेरुक दण्ड के कार्य

आज हम कशेरुक दण्ड के कार्य के बारे में पढ़ेंगे। कशेरूक दण्ड क्या होता है? इसके बारे में हम पहले ही पढ़ चुके है। हमारे शरीर का कशेरूक दण्ड रीढ़ की हड्डियों, पसलियों और स्टर्नम या छाती की हड्डियों को एक दूसरे से जुड़कर एक पूर्ण संरचना के समान बना होता है।

हम यहाँ पर कशेरूक दंड के कार्य, पसलियों के झुकाव के कार्य, पसलियों या Ribs के वनावट के कार्यों के बारे में जानेंगे।

कशेरुक दण्ड के कार्य

  1. यह शरीर को आधार स्तंभ की भांति सीधा रखती है जिससे शरीर इधर-उधर लुढ़कता नहीं है।
  2. खोपड़ी और कंधो के भार को सम्भालती है।
  3. मेरूरज्जु की बाहरी आघातों से रक्षा करती है।
  4. विभिन्न आंतरिक अंगो के साधकर, सुरक्षा प्रदान करती है। वक्ष व उदर के अंगो की सर्वाधिक रक्षा करती है।
  5. गमन में सहायक है।
  6. शरीर को इधर उधर मोड़ने, घूमाने में सहायता कर पेशियों को जोड़ने का स्थान प्रदान करती है।

कशेरूक दण्ड के झुकाव

कशेरूक दण्ड में चार झुकाव (Curve) होते हैं:

  1. ग्रीवा का झुकाव (Cervical)
  2. पृष्ठीय (पीठ का) झुकाव (Dorsal)
  3. कटि का झुकाव (Lumber)
  4. सेक्रम का झुकाव (Sacrum)

कशेरुक दण्ड के कार्य झुकाव के लाभ

  • मनुष्य के सीरिया कंधों पर भारी बोझ उठाने में सहायक है।
  • पीठ की शक्तिशाली पेशियों को भी यह परस्पर संबंधित होने के लिए स्थान प्रदान करते हैं।
  • कशेरुक दंड हमारे मस्तिष्क को शरीर की क्रियाओं से होने वाले झटकों से बचाता है। पैरों के बल कूदने पर या कहीं से गिर जाने पर यह झटको को दिमाग तक नहीं पहुंचने देता है।
  • नितांत सीधा स्तंभ होने की अपेक्षा घुमावदार स्तंभ में अधिक विस्तरण एवं संकुचन की क्षमता होती है।
  • इन घुमाओ से ही वक्ष एवं उधर में स्थित अवयवों को सहारा प्राप्त होता है।

जन्म के समय बालक के शरीर में केवल पृष्ठ है जवाब होता है। जब बालक गर्दन उठाना सीखता है तब ग्रीवा का जवाब दिखाई देने लगता है। जब चलने लगता है तब कटी का झुकाव और साथ ही सैक्रम का झुकाव भी दिखाई देने लगता है।

पसलियाँ या पर्शुका (Ribs)

कशेरुक दण्ड के कार्य
Ribs

वक्ष स्थल में उरोस्थि के दोनो ओर 12-12 अर्ध चंद्राकर हड्डियाँ होती है। इन्हें ही पसलियाँ कहते है ये सभी पीठ और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी होती है। प्रत्येक ओर उपर की सात पसलियाँ सामने की और उरोस्थि से जुड़ी होती है।

इसके बाद की तीन पसलियाँ आपस में जुड़कर उपर सातवी पसली से जुड़ी होती है। इसके बाद नीचे की दो पसलियाँ किसी से जुड़ी हुई नही होती है ये हवा में लटकती हुई होती है। इनको ही हम मुक्त परशुकाओं के नाम से जानते है।

सभी पसलियों का कुछ भाग उपास्थि का बना होता है और इनके द्वारा ही ये उरोस्थि से जुड़ी होती है।

कशेरूक दण्ड की पसलियों के कार्य

पसलियाँ अपनी संरचना और आकृति के कारण एक मजबूत और सुरक्षित पोस्ट बनाती है। इस पोस्ट के भीतर हमारे फेफड़े और ह्रदय सुरक्षित रहते हैं। यह पिछले कुछ लचीली होती हैं।

जब पसलियों पर कुछ दबाव डाला जाता है या हल्की चोट लग जाती है तो यह टूटती नहीं है इसके विपरीत अंदर की ओर लचक जाती है और थोड़ा झुक जाती है।

उरोस्थि छाती की हड्डी या स्टर्नम

यह 15 16 सेंटीमीटर लंबी, एक चोडी और चपटी हड्डी है। जो छाती के बीचों-बीच रहती है। इसका ऊपरी भाग कुछ अधिक चौड़ा और निचला भाग पतला होता है।

इसके तीन भाग होते है:

  1. मेनूब्रियम (उपर का चोड़ा भाग जिसे उरोस्थि मुष्टि कहते है।)
  2. ग्लैडीओलस (बीच का पतला और लम्बा भाग जिसके किनारे कई खंडो में बटे हुए होते है।)
  3. जिफ़ायड (उपास्थि का बना छोटा व पतला भाग होता है।)

तो आपने देखा कशेरुक दण्ड के कार्य करने के कारण ही हम गतिमान अवस्था में रहते है और सुरक्षित रहते है। यदि कशेरूक दण्ड काम करना बंद कर देगा तो हम चल-फिर भी नही सकेंगे और हमारा नर्वस सिस्टम भी काम करना बंद कर देगा।

क्योंकि हमारे दिमाग को जो सिग्नल मिलते हैं वह हमारे कशेरुक दंड के द्वारा ही मिलते हैं। यह छोटी-छोटी नसों से सिग्नल रिसीव करके हमारे मस्तिष्क तक पहुंचाता है। यही कारण है कि हमारे पैर में कांटा चुभ आने पर हम उसे एकदम ऊपर उठा लेते हैं।

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