Manav Pachan Tantra Kise Kahate Hain? पाचन तंत्र किसे कहते है?, पाचन तंत्र के प्रमुख अंग, पाचन तंत्र के कार्य, मानव पाचन तंत्र को सुचारु रखने के नियम की डिटेल में जंकरी लेंगे।
पाचन क्या है?
हम जो खाना खाते है उसका हमारे शरीर में पहुँच कर साँस द्वारा ली गयी ऑक्सिजन की उपस्थिति में जल कर आवश्यक ऊर्जा का उत्पन्न होना पाचन कहलाता है।
पाचन की परिभाषा
शरीर के द्वारा खाए गए खाने का छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलकर शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा का निर्माण करना पाचन कहलाता है।
पाचन की प्रक्रिया ठीक ऐसे ही है जैसे कि किसी गाड़ी के इंजन में पेट्रोल और डीजल जलकर गाड़ी को ऊर्जा प्रदान करता है जिसके कारण हम एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा पाते हैं या अपनी जरूरत के दूसरे काम कर सकते हैं।
मानव पाचन तंत्र का चित्र
पाचन तंत्र के प्रमुख अंग
1. मुख
पाचन तंत्र का आरंभ मुख से ही होता है। यह अन्य पचाने में चक्की का काम करता है। मुख में दांतो के द्वारा चलाया गया भोजन बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है। भोजन के इन छोटे-छोटे टुकड़ों पर पाचक रसों की कृपया सुगमता से होती है। जिससे भोजन सरलता सुगमता से पच जाता है।
हमारे मुख के दोनों जगहों में दांत मजबूती से जकड़े रहते हैं। मुख्य का ऊपर का भाग तालुका कहलाता है। जीव भोजन को मुख में एक ओर से दूसरी और घुमाने के तथा गले में नीचे ले जाने का काम करती है।
जीभ के ऊपर थोड़े थोड़े छोटे छोटे दाने होते हैं जिन्हें पतीला कहते हैं। इनसे ही हमें स्वाद का अनुभव होता है इसीलिए इन्हें स्वाद कालिकाएं भी कहते हैं। मुख में दोनों तरफ तीन जोड़ी लार ग्रंथियां पाई जाती हैं जिनमें लार उत्पन्न होती है।
जब हम भोजन करते हैं तो हमारे मुख में उपस्थित लार ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और लार नामक रस का उत्सर्जन करने लगती हैं। यह लार भोजन में मिल जाती है। लार में टायलिन नमक एक किण्वन होता है। जो भोजन के स्टार्च को शक्कर में बदल देता है।
2. दांत
दांत हमारे पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि भोजन का पाचन भी दाँतो से ही शुरू हो जाता है। क्योंकि दाँतो से ही भोजन को चबाया जाता है।जिससे यह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर हमारे पेट के अंदर जाता है।
हमारे मुख में दो जबड़े होते हैं। और प्रत्येक में 16 सोलह दांत पाए जाते हैं। हमारा शरीर बचपन से ही भोजन को पचाने के काबिल नहीं होता है। इसीलिए बच्चों में दांत नहीं पाए जाते हैं।
जब शरीर का पाचन तंत्र खाने को पचाने लायक बनना शुरू हो जाता है तो बच्चों के दांत निकलने शुरू हो जाते हैं।
दांत दो प्रकार के होते हैं:
अस्थाई या दूध के दांत
ये 6 से 9 माह तक की आयु से निकलने शुरू होते हैं और 5 वर्ष की आयु तक सभी टूट जाते हैं। यह दांत आकार में बहुत छोटे होते हैं तथा जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है और उसका जबड़ा बड़ा हो जाता है तो अस्थाई दांत गिरने लगते हैं।
क्योंकि 6 से 9 माह की आयु तक या 5 वर्ष की आयु तक बच्चे का मुख्य और मां का दूध ही होता है इसीलिए इन बातों को दूध के दांत भी आते हैं।
स्थाई या अन्न के दांत
6 वर्ष की आयु से बच्चे के अन्न के दांत निकलने शुरू हो जाते हैं। इन बातों को ही स्थाई दांत कहा जाता है। इनकी संख्या 32 मानी जाती है लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य का शरीर और उसके जबड़े छोटे होते चले जा रहे हैं 26 या 28 ही रह गई है।
अन्न के दाँतो के प्रकार
- छेदक दांत
- रदनक दांत
- अग्र चवर्णक दांत
- चवर्णक दांत
3. जीभ
मुख के अंदर पाई जाने वाली मोटी तथा गुलाबी रंग की संरचना को जीभ कहते हैं। इसका ऊपरी भाग खुरदरा होता है जिसमें सूक्ष्म अंकुर पाए जाते है।
जीभ के कार्य
- जीभ हमें स्वाद का अनुभव कराती है।
- भोजन को चवाने के लिए बार बार दाँतो के बीच में लाती है।
- दाँतो में फँसे भोजन को निकालती है।
4. लार ग्रंथियाँ
लार ग्रंथियाँ मुख में मौजूद भोजन पर सलाइवा का छिड़काव करती हैं। लार के द्वारा ही भोजन को गिला रखा जाता है और उसे पेस्ट के रूप में तैयार करके पेट के अंदर भेजा जाता है। और यह सभी काम करने का श्रेय लार ग्रंथियों को जाता है।
लार एक तरल मिश्रण, पारदर्शी, चिपचिपा, द्वारा में कुछ झारिया होता है। मुख्य में तीन तीन जोड़ी लार ग्रंथियां पाई जाती हैं:
- अधोजिव्हा ग्रंथियाँ
- कर्णमूल ग्रंथियाँ
- अधोहनु ग्रंथियाँ
5. ग्रसनी
ग्रसनी आहार नाल का प्रारंभिक स्थान है ग्रसनी से मलद्वार तक एक लंबी नली होती है। ग्रसनी आगे मुख गुहा तथा पीछे की ओर ग्रास नली से जुड़ती है। इसकी लंबाई कम होती है और आकार में की अपनी मां होती है ग्रसनी को हलक या निगल द्वार भी कहते हैं।
यह केवल भोजन करते समय ही खुलती है कभी-कभी जल्दबाजी में भोजन के कारण स्वास नली में चले जाते हैं जिसके कारण फंदा लग जाता है मुंह में भली प्रकार की सा भोजन ग्रसनी से होकर जीभ द्वारा ग्रास नली में खिसक जाता है।
6. ग्रासनलि
यह 1 लंबी संकरी नली होती है जो लगभग 35 से 38 सेंटीमीटर तक लंबी होती है। यह आहार नाल का दूसरा भाग है जो ग्रसनी से अमाशय तक फैला रहता है।
इसकी लंबाई प्रत्येक जीव की गर्दन की लंबाई पर निर्भर करती है। जिराफ और ऊँट की ग्रासनलि सबसे ज्यादा लंबी होती है। यह गोल छल्लेदार पेशियों से बनी होती है।
इसकी भीतरी सतह श्लेषम झिल्ली से बनी एक पर्त होती है। साधारणतः इस नली का छिद्र ज्ञात नही हो पाता है।किंतु भोजन के पहुँचते ही ग्रसिका की पेशियाँ खिंचती है। जिससे इसका छिद्र खुल जाता है और भोजन आगे खिसक जाता है।
भोजन के पहुँचते ही इस नली में संकुचन और प्रसार होने लगता है जिससे भोजन नीचे की और खिसकता है और छोटे छोटे कणो में पिस्ता चला जाता है तथा अमाशय में पहुँच जाता है।
7. आमाशय
अमाशय को आमतौर पर पेट कहा जाता है।यह मशक के आकार का एक थैला होता है।जो उदर के बाएँ भाग में ड़ायफ़राम नीचें रहता है। इसका चौड़ा भाग बाईं तरफ़ रहता है और इसकी लम्बाई लगभग २५ से ३० सेमी होती है। चौड़ाई लगभग १० से १२ सेमी होती है।
अमाशय में बाईं और एक छिद्र होता है यहीं ग्रसिका अमाशय में मिलती है। ग्रसिका से आमाशय में भोजन के पहुंचने का यह मार्ग हृदय के निकट होने के कारण जठागम या कारडिया कहलाता है।
अमाशय के दाहिने और एक छिद्र होता है इस क्षेत्र के द्वारा अमाशय छोटी आत से मिला हुआ रहता है अमाशय और छोटी आत के बीच इस क्षेत्र को जठन निर्गम या पायल ओरस द्वार कहते हैं।
8. क्षुद्र आँत
अमाशय के जठर निर्गम से ही क्षुद्र आँत शुरू हो जाती है। यह पतली ब लंबी नली होती है। यह लगभग 3 सेंटीमीटर मोटी होती है इसकी लंबाई लगभग 6 मीटर के आसपास होती है।
यह एक कुंडलित नलिका होती है जिसका कार्य भोजन का पाचन है। इसका निचला हिस्सा बड़ी आँत से जुड़ा हुआ रहता है। जठर निर्माण के आगे छोटी आत का लगभग 30 सेंटीमीटर का भाव कुछ अर्धचंद्राकार सा मुंडा रहता है। इसको ग्रहणी या डयो डिनम कहते है।
9. ब्रहत या बड़ी आँत
बड़ी आत छोटी आँत के निचले हिस्से से शुरू होती है। यह भी छोटी आँत के समान एक गोल नलिका होती है परंतु इसकी लम्बाई छोटी आँत से कम होती है।और मोटाई बहुत अधिक होती है। इसकी लंबाई लगभग डेढ़ मीटर होती है।
बड़ी आंत का आरंभ का भाग एक छोटी थैली के आकार का होता है जिसको हम अधनाल या सीकम कहते है।सीकम में ५-७ सेमी लम्बी, पतली सी एक नली लगी रहती है।इसे परिशेषिका या अपेंडिक्स कहते है।
शरीर में इसका कोई विशेष काम या महत्व नही होता है। इसमें सूजन आने या किसी प्रकार के रस के पकने पर बहुत कस्ट होता है।
बड़ी आँत का अंतिम १२ – १५ सेमी का भाग मलाशय कहलाता है। भोजन को जो भाग पचता नही है उसको मल कहते है। यह इसी भाग में आकार एकत्रित होता रहता है।
पाचन तंत्र के सहायक अंग
1. यकृत
यकृत हमारे शरीर की सबसे बड़ी और अवश्य ग्रंथि है। यह उदर के ऊपरी भाग में तथा डायाफ्राम के नीचे दाहिनी ओर स्थित रहती हैं। इसकी लंबाई लगभग 20 से 25 सेंटीमीटर तक होती है इसका दाहिना भाग मोटा ब चौड़ा तथा बाया भाग पतला ब चटपटा होता है।
इसका वजन लगभग डेढ़ किलोग्राम होता है सोने में कठोर लगता है परंतु यह मुलायम और गहरे लाल रंग का होता है। ग्रहणी में जो कितना म क्रश बाहर से आकर मिलता है वह यकृत में ही बनता है।
कभी किसी रोग या विकार के कारण जब यकृत बढ़ जाता है तब यह पसलियों के बाहर निकल कर आ जाता है और छूकर अनुभव किया जाता है इसे हैपेटिक ग्रंथि भी कहते हैं।
2. पित्ताशय
यह यकृत में बने हुए पित्त को संग्रहित करने का कार्य करता है। यह मांस और तंतु से बना हुआ एक थैला होता है। इसका आकार नाशपाती के जैसा होता है।
इसका चौड़ा भाग आगे की ओर तथा यकृत से बाहर निकला हुआ होता है। तथा नुकीला भाग पीछे की ओर रहता है। इस पतले भाग से ही तितली निकलती है जो आगे बढ़कर संयुक्त पित्त स्रोत से मिलकर पित्त वाहिनी बनाती है।
पित्ताशय का कार्य केवल चित्र को संग्रहित करके रखना है और जब ग्रहणी में भोजन पहुंचे तब वहां से पित्त को पहुंचाना है पित्त छारीय होता है। पित्त पीला रंग लिए हरे रंग का होता है। इसका स्वाद कड़वा होता है।
3. अग्न्याशय
यह भी एक ग्रंथि है जो आकार में यकृत से छोटी होती है तथा उधर की पीठ की ओर दीवार से जुड़ी रहती है। इसका आकार पिस्तौल के जैसा होता है। इसका दाया भाग मोटा और कुछ गोल सा होता है इसे हम सिर भी कहते हैं।
सिर से पूंच तक का भाग पतला होता चला जाता है जिसे हम पिंड कहते हैं। सिर का भाग ग्रहणी से तथा पूँछ का भाग प्लीहा से जुड़ा होंठ है। इसकी लम्बाई लगभग 14 से 15 सेंटीमीटर होती है।
अग्न्याशय में एक पाचक रस बनता है जिसको अग्न्याशयि रस कहते है। इसको पूर्ण रस कहते है क्योंकि इसमें तीनो मुख्य पोषक पदार्थों कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटींस और बशा को पचाने वाले एंजाइम होते हैं।
4. प्लीहा या तिल्ली
प्लीहा गहरे लाल या बैंगनी रंग की लंबी संकरी, बिल्कुल इसी सेम के बीज के आकार की लसीका ग्रंथि है। यह लगभग 15 सेंटीमीटर लंबी और 5 सेंटीमीटर चौड़ी होती है इसमें रक्त वाहिनी ओं तथा रक्त कोशिकाओं का जाल बिछा रहता है।
यह एक पाचन गिनती नहीं है फिर भी पाचन की क्रिया में बहुत महत्वपूर्ण कार्य करती है।
- यह ग्रंथि रक्त में मौजूद टूटे-फूटे कणों को नष्ट करके रख को स्वस्थ और शुद्ध बनाए रखने का काम करती है।
- यह आंतों में आमाशय को रक्त उपलब्ध कराती है। वयस्क अवस्था में यह ग्रंथि शरीर में एक ब्लड बैंक की तरह काम करती है। इस में लाल रक्त कणिकाओं का संग्रह होता है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मुक्त करती है इसके साथ-साथ यह लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण भी करती है पाचन के समय यह सिकुड़ जाती है और पाचन क्रिया पूरी होने के बाद उन्हें रक्त भरने से फैल जाती है।
पाचन तंत्र को सुचारु रखने के नियम
पाचन तंत्र हमारे शरीर का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर मनुष्य का पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करेगा तो वह कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो जाएगा और अंततः उसकी मृत्यु हो जाएगी।
पाचन तंत्र को सुचारू रखने के कुछ महत्वपूर्ण नियम है जिन्हें आप सभी को जरूर फॉलो करना चाहिए और यह नियम इस प्रकार हैं:
- यदि व्यक्ति को तीव्र भूख लग रही है तो भोजन से पूर्व पानी नहीं पीना चाहिए।
- भोजन से पूर्व चाय कॉफी या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए इससे पाचन तंत्र अव्यवस्थित होता है।
- भोजन करते समय क्रोध, तनाव, तथा चिंता नहीं करनी चाहिए।
- भोजन धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए और भोजन करते समय बातें नहीं करनी चाहिए।
- हमेशा हल्का और सुपाच्य भोजन ही करना चाहिए।
- हमेशा संतुलित भोजन करना चाहिए भोजन में फल और ताजी सब्जियों का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए।
- अपने भोजन में सभी प्रकार के अनाज फल और दालों का जरूर उपयोग करें। इसके साथ-साथ दूध और दूध से बने प्रोडक्ट का भी इस्तेमाल करें।
- हमेशा भूख लगने पर ही भोजन ग्रहण करें आवश्यकता से ज्यादा भोजन करना सेहत के लिए हानिकारक होता है।
- भोजन करते समय बार-बार पानी नहीं पीना चाहिए हो सके तो भोजन करने की कम से कम 2 घंटे के बाद पानी पीना चाहिए।
- भोजन एक ही बार आवश्यकता से अधिक ना करें दिन में दो से तीन बार भोजन करना चाहिए।
- दिनभर विश्राम की अवस्था में बैठे रहे थोड़ी थोड़ी देर बाद उठकर पहनाया व्यायाम करना चाहिए।
- भोजन हमेशा निश्चित समय पर तथा रात्रि में सोने से दो-तीन घंटे पहले ही कर लेना चाहिए।
- खाना खाने के तुरंत बाद टाइम ना करें कम से कम 10 या 15 मिनट चलने फिरने के बाद ही लेटना चाहिए।
- अधिक चिकनाई और तेज मिर्च मसाले भोजन के उपयोग से बचना चाहिए।
- गर्म भोजन के बाद ठंडा तथा ठंडे भोजन के बाद गर्म भोजन नहीं करना चाहिए।
- शराब सिगरेट और धूम्रपान वाले पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए यह पाचन तंत्र को व्यवस्थित करते हैं।
- सहा स्वच्छ शुद्ध भोजन बस आप शांत वातावरण में ही ग्रहण करें अन्यथा स्वास्थ्य पर इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं।
पाचन तंत्र से सम्बंधित प्रश्न
भोजन का सर्वाधिक अवशोषण किस अंग में होता है?
भोजन का सर्वाधिक अवशोषण छोटी हाथ में होता है।
आहार के पाचन का क्या अर्थ है?
आहार के पाचन का अर्थ होता है हमारे द्वारा खाए गए खाने का शरीर में अन्य पाचक रसों द्वारा ऊर्जा में परिवर्तित होना। इसी ऊर्जा के कारण हम अपने दैनिक कार्य जैसे चलना फिरना उठना बोलना हंसना आदि कर सकते हैं।
टाइलिन नामक रस कहां पाया जाता है?
टाइलिन नामक रस मनुष्य की लार में पाया जाता है। लार हमारे मुंह में लार ग्रंथियों के द्वारा बनती है और यह भोजन को गिला करने का काम करती है। जिससे वह आसानी से छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है और पचने में सहायक होता है।
मुंह से आरंभ होकर मलद्वार तक के मार्ग को क्या कहते हैं?
मुंह से आरंभ होकर मलद्वार तक जाने वाले मार्ग को आहार नाल कहते हैं।